Yoga Slokas: योग दिवस पर श्लोकों के माध्यम से योग की महत्वपूर्णता को समझें

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Yoga Slokas: योग संस्कृति में विशेष महत्व रखता है, और योग दिवस इसे समर्पित किया जाता है, जो हर साल 21 जून को मनाया जाता है। इस दिन का महत्व योग के गहरे अर्थ और लाभों को जनमानस में समझाने के लिए होता है। वेदों और पुराणों में योग की महत्वपूर्णता को समझाने वाले श्लोक हमें योग के महत्व को समझने और इसे अपने जीवन में शामिल करने के लिए प्रेरित करते हैं। योग के श्लोक शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में हमें मार्गदर्शन प्रदान करते हैं और इसके अद्वितीय लाभों को समझने में मदद करते हैं।

वेदों में योग के महत्व को समझाते हुए कहा गया है कि योग साधना से व्यक्ति अपने शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक पोषण को संतुलित कर सकता है। श्रीमद् भगवद् गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को योग के महत्व को समझाते हुए कहा है कि योग से मन को निग्रह करके व्यक्ति अपने आत्मा को प्रकाशित कर सकता है। योग साधना व्यक्ति को संतुलित और प्राणिक जीवन जीने में मदद करती है, जैसा कि योग श्लोकों में स्पष्ट किया गया है। योग साधना ध्यान, धारणा और समाधि के माध्यम से व्यक्ति को आध्यात्मिक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होती है।

योग स्लोकों को समर्पित यह लेख हमें योग के अर्थ, महत्व और लाभों को समझाने में मदद करता है। योग के श्लोकों को सोशल मीडिया पर साझा करके या अपने परिवार और दोस्तों को भेजकर हम उन्हें योग के महत्व के प्रति प्रेरित कर सकते हैं, तो चलिए पढ़ते है योग पर श्लोक

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योग पर स्टेटस (Yoga Day Status)

“आप के कार्य और भी आसान हो जाते हैं

, अगर आप अपना दिन योग से शुरू करते हैं।”

योग-विज्ञान आपको अपना जीवन और एक जागरुक धरती बनाने की आजादी देता है, जिससे हर इंसान और धरती के सभी जीवों के कल्याण का द्वार खुलता है।

जब पूरी तरह अनुशासित होकर अपने मन से

सभी इच्छाओं से नियन्त्रण प्राप्त कर लेते हैं

तब हम अपने आप को जान पाते है

जिन लोगों ने योग संस्कृति को बनाया, वे विचारों और भावनाओं से संचालित नहीं थे। जागरूकता और बोध ने उनका मार्गदर्शन किया था।

“दूसरों की मदद करने से पहले हमें खुद की मदद

करने के काबिल होना होगा और ये आपके अच्छे

स्वास्थ्य के बल से ही होगा। इसलिए प्रतिदिन योग करें

और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करें।”

जब सांसें विचलित होती हैं तो मन भी अस्थिर हो जाता है।  लेकिन जब सांसें शांत हो जाती हैं , तो मन भी स्थिर हो जाता है, और योगी दीर्घायु हो जाता है। इसलिए , हमें श्वास पर नियंत्रण करना सीखना चाहिए।

योग हमें मानसिक और शारीरिक रूप से सशक्त बनाता है। यह जीवन को खुशहाल और स्वस्थ बनाता है।

बाहर क्या जाता है उसे आप हमेशा कंट्रोल नहीं कर सकते हैं।  लेकिन अंदर क्या जाता है उसे आप हमेशा कंट्रोल कर सकते हैं।

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योग पर संस्कृत श्लोक (Yoga Shlok In Sanskrit )

  • योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः ।
  • तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत ।
  • योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय ।
  • योगः कर्मसु कौशलम् ।
  • शरीरं यदावाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वरः ।
  • योगिनः कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वाऽत्मशुद्धये ।
  • यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते ।
  • समत्वं योग उच्यते ।
  • योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय ।
  • त्रयाणां देहानां क्षयोऽनुपपत्तेः ।
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योग कोट्स इन संस्कृत (Yoga Shlok in Sanskrit with Meaning)

  • योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः ।
    अर्थ: योग चित्त की वृत्तियों को नियंत्रित करना है।
  • तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत ।
    अर्थ: हे भारत, तू सब प्राणियों के साथ उसी के शरण जा।
  • योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय ।
    अर्थ: ओ धनञ्जय, कर्मों में योगी बनकर संग का त्याग कर।
  • योगः कर्मसु कौशलम् ।
    अर्थ: कर्मों में योग ही कुशलता है।
  • शरीरं यदावाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वरः ।
    अर्थ: जब शरीर मिलता है और जब इसे छोड़ता है, वह ईश्वर है।
  • योगिनः कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वाऽत्मशुद्धये ।
    अर्थ: योगी लोग कर्म करते हैं, संग का त्याग करके, अपने आत्मा की शुद्धि के लिए।
  • यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते ।
    अर्थ: जब तक इंद्रियों का विषय में रुचि नहीं होती, तब तक कर्मों में राग नहीं होता।
  • समत्वं योग उच्यते ।
    अर्थ: समता को ही योग कहा जाता है।
  • योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय ।
    अर्थ: योग में स्थित रहकर हे धनञ्जय, कर्म कर।
  • त्रयाणां देहानां क्षयोऽनुपपत्तेः ।
    अर्थ: तीनों शरीरों का नाश होना असंभव है।

योग पर श्लोक (Yoga Slokas)

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  • योपाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां पतञ्जलिं प्राञ्जलिरानतोस्मि॥

यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधय: अष्टौ अङ्गानि।

  • व्यायामात् लभते स्वास्थ्यं दीर्घायुष्यं बलं सुखं। आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम् ||
  • शरीरोपचयः कान्तिर्गात्राणां सुविभक्तता । दीप्ताग्नित्वमनालस्यं स्थिरत्वं लाघवं मृजा ॥
  • पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः।

पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवताः॥

  • सत्यं माता पिता ज्ञानं धर्मो भ्राता दया सखा।
  • समत्वं योग उच्यते 
  • मनःप्रशमनोपायो योग इत्यभिधीयते॥

योग पर दोहे

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योग दिवस पर आइये ,मिलकर कर ले योग|

तन को चुस्त बनाइये ,काया रखें निरोग

रोज सबेरे जागिये,करिये योगाभ्यास|

मन भर पानी पीजिये,जब भी लगती प्यास

योगा जिसको भा गया ,नहीं पड़ा बीमार|

फुर्तीला तन-मन किया,सेहत दिया सुधार

सुबह गरम पानी पिये,कब्ज रहेगी दूर|

सेहत जिसको चाहिये,काम करें भरपूर

योगा सेहत के लिये, होता है वरदान|

सब रोगों का कर रहा ,योगा आज निदान

फोटो खूब खिचाइये ,मार मार कर पोज|

लेकिन सेहत के लिये ,योगा करिये रोज

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Conclusion:-

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