Yoga Poems in Hindi: योग एक ऐसी प्राचीन प्रथा है जो हमारे जीवन को स्वस्थ, संतुलित और शांतिपूर्ण बनाने के लिए मानवता को समर्पित करती है। योग दिवस का आयोजन हर साल 21 जून को किया जाता है, जिसमें लोग विभिन्न योग गतिविधियों, भाषण और सेमिनारों में भाग लेते हैं। इस दिन का उद्देश्य योग की महत्वपूर्णता को स्वास्थ्य, मानसिक समृद्धि और आत्मिक शांति के लिए जन जागरूक करना है। योग दिवस के माध्यम से लोग योग के विभिन्न आयामों को समझते हैं और अपने जीवन में इसके लाभों को शामिल करने का प्रयास करते हैं।
योग दिवस के माध्यम से हम सभी को योग की महत्वपूर्णता को समझाने और इसे अपने दिनचर्या में शामिल करने का प्रेरणा मिलता है। इस अवसर पर हमें योग के प्रति अपनी गहरी निष्ठा को दिखाना चाहिए और इसे एक स्वस्थ, संतुलित और समृद्ध जीवन का माध्यम बनाने का संकल्प लेना चाहिए। योग ही वह साधन है जो हमें शारीरिक, मानसिक और आत्मिक रूप से समृद्धि प्रदान करता है और हमें एक सुखी जीवन जीने की प्रेरणा देता है।
योग के अद्वितीय असर को समझाने के लिए योग कविता एक महत्वपूर्ण माध्यम है। यह हमें योग के गहरे अर्थ को समझने में मदद करती है और हमारे जीवन में उसके लाभों को अनुभव करने के लिए प्रेरित करती है। इसी को मद्देनजर रखते हुए हमने हमारे इस लेख में योग कविताओं को सलंग्न किया है। यदि आप भी योग कविताएं खोज रहे है पर आपको मिल नहीं रही है तो आपके बिल्कुल सहीं आर्टिकल पर आएं है। आज के इस लेख में हम आपको साथ एक से बढ़कर एक योग पर कविताएं शेयर करने जा रहे है, तो देर किस बात की, चलिए शुरु करते हैं..
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योग पर कविताएँ हिंदी में (Poems On Yoga In Hindi)
योग का दिवस है आज, जो अत्यंत महत्वपूर्ण है,
इसका सन्देश सुनो, मन को शांति देता यह।
योग से होती है सेहत अच्छी, तन-मन का संयम बढ़ता है,
ध्यान और आध्यात्मिकता में लिप्त है योग का यह राजा।
अभ्यास से योग का होता है महत्व अद्वितीय,
समरसता और शांति का अनुभव, अतीत और भविष्य का विश्लेषण करता यह।
अपने शरीर को संयम देता, होता है उसमें शक्ति की वृद्धि,
मानसिक और भावनात्मक विकास में योग का निरंतर साथी।
ध्यान में लिप्त रहकर, पाते हैं हम आत्मानंद की सीमा,
योग की उपासना से मिलती है हमें मुक्ति की अनुभूति, अंतर्मुक्ति की अपार सीमा।
योग दिवस के अवसर पर, यही बनाएं एक दृढ़ संकल्प,
योग को जीवन का हिस्सा बनाएं, स्वस्थ रहें और समृद्ध बनें, यही है हमारा संकल्प।
योग दिवस की बधाई हो, यही हमारी शुभकामनाएं हैं,
योग से जुड़े रहो, स्वस्थ और संतुलित रहो, यही हमारी वासनाएं हैं।
चीर तम को समर्था का कोई यहाँ,
योग को जगमगाकर कोई जा रहा।
था धरा का यहां ‘राम’ व्याकुल पड़ा,
तन से, मन से बहुत खिन्न आकुल खड़ा।
काम भी कर रही शक्ति पीछे खड़ी,
योग का ध्यान उसको था होता रहा।
थक चुका था बहुत लड़ के जीवन में वह,
रोग से क्षीण, तन से औ साहस से वह।
एक संकेत पाकर ‘परम हंस’ से,
योग का ही उसे ध्यान होता रहा।
हो गयी फिर कृपा सत्यानन्द की,
ज्ञानी गुरु योग-अवतार की।
युग के अवतार की प्रेरणा पा मधुर,
अनुप्राणित सदा वह था होता रहा।
लग गया फिर शिविर योग का एक यहां,
‘आत्म-दर्शन’ का पद-तल जोक पहुंचा यहां।
हो गई फिर धरा धन्य विद्यालय की,
योग का गीत गुंजित था होता रहा।
ऊँ का जो मधुर उच्चरित स्वर मिला,
वन्दना कर गुरु की अमित बल मिला।
ध्यान ऐसा हुआ भूल तन, मन गया,
एक अनुभव नया नित्य होता रहा।
छात्र-छात्रा, अभिभावक, अध्यापक सभी,
योग की सुर-सरि में नहा के सभी।
‘आत्म-दर्शन’ – निर्देशन के आलोक से,
ज्ञान-वर्द्धन सतत सब का होता रहा।
सीखने करने अभ्यास आसन के थे,
लग गये प्राण-पण से सजग होके वे।
फिर तो छिटकी किरण दिव्य ऐसी यहां,
मार्ग-दर्शन सहज सब का होता रहा।
स्वामी ‘आत्म-दर्शन’ के दर्शन ही से,
अकलानन्द के मात्र आ जाने से।
रश्मियाँ योग की, ध्यान की, ज्ञान की,
पाके अनुप्राणित, प्रेरित जन होता रहा।
सौम्य वातावरण भव्य अब बन गया,
योग में जन मानस का मन रम गया।
चिर ऋणी हम सभी है स्वामी तेरे,
मिट गया तम सवेरा जो होता रहा।
आप अपने बने धन्य हम हो गये,
प्रेम-मुरली बजी ब्रह्म में खो गये।
शान्ति के पाठ से स्वर हरि ऊँ सुन,
पथ आलोकित नित्य होता रहा।
चीर तम को समर्था का कोई यहाँ,
योग को जगमगाकर कोई जा रहा।
-जनार्दन राय
आओ हम सब मिलकर योग दिवस मनायें,
गांव-गांव और शहर-शहर में, इसकी अलख जगायें
योग का मतलब है जोड़ना,
मोह को मन से तोड़ना,
मानव को प्रकृति से जोड़ना,
चित्त की वृत्तियों को सिकोड़ना।
बस इतनी सी बात, लोगों को समझायें
आओ हम सब मिलकर, योग दिवस मनायें।
इसमें न कोई खर्चा, न कोई और दिखावा है,
स्वस्थ रहें हम कैसे, बस इसका ही बढ़ावा है।
लेकर चटाई हम सब, धरती पर बैठ जायें,
आओ हम सब मिलकर, योग दिवस मनायें।
चाहे खड़े हों, चाहे बैठे हों, या चाहे हों लेटे,
योग एक स॔तुलन है, विविध विधा लपेटे।
गहरी लम्बी सांस खींचकर, इसे शुरू करायें,
आओ हम सब मिलकर, योग दिवस मनायें।
पद्मासन हो वज्रासन हो, या हो चकरा आसन,
ध्यानमग्न हो बैठ जायें, बिना करे प्राशन।
सबसे पहले उठकर, इसको ही अपनायें,
आओ हम सब मिलकर योग दिवस मनायें।
योग बहुत है फायदेमंद, जैसे शाक मूल और कंद,
मिट जाये सारे मन के द्वंद्व, बिना क्लेश और बिना क्रंद।
दैनिक जीवनचर्या का, हिस्सा इसे बनायें,
आओ हम सब मिलकर योग दिवस मनायें।
आयुर्वेद और योग का, झंडा हम फहरायें,
भारतदेश और विश्व को, रोगमुक्त बनायें।
इसी प्रतिज्ञा को लेकर, हम आगे बढ़ते जायें,
आओ हम सब मिलकर योग दिवस मनायें।
डॉ. मनजीत कौर
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योग पर कविता (Poem On Yoga) | योग की महिमा बताती कविताएं
योग करें हम योग करें
दूर सभी हम रोग करें,
वरदान मिला जो हमको
हम उसका उपयोग करें।
तन-मन स्वस्थ बनाता है
आलस दूर भगाता है,
सदा सुखी वह रहता है
जो इसको अपनाता है।
कहे संजीवनी बूटी
जीवन को दे नए प्राण,
ऐसा आशीर्वाद मिला
होता सभी का कल्याण।
उद्देश्य यही इसका है
सृजन स्वस्थ समाज का हो,
भविष्य बनेगा बेहतर
ध्यान यदि बस आज का हो।
संदेश यही फैलाओ
इसको सारे लोग करें,
वरदान मिला जो हमको
हम उसका उपयोग करें।
योग करें हम योग करें
दूर सभी हम रोग करें।
योगा को अपनाएं
अपना जीवन सफल बनाएं
स्वस्थ निरोगी काया
जीवन कितना निखर आया.
मानव को समझाना है
आलस को दूर भगाना है
योग स्वास्थ्य की संजीवनी है
अपने तन मन को जगाना है..
योग करे प्राणतत्व का संचार
भविष्य होगा गुलजार
नित्य जो करे योग का पालन
देश में करें योग का प्रचार
ध्यान में हो एकाकार
ज्ञान का होता संचार
इन्द्रियों को रखे केन्द्रित
होता ईश्वर से साक्षात्कार .
डॉ.भावना शुक्ल
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योग पर छोटी कविता हिंदी में (Small Poem On Yoga In Hindi)
योगा को अपनाएं
अपना जीवन सफल बनाएं
स्वस्थ निरोगी काया
जीवन कितना निखर आया.
मानव को समझाना है
आलस को दूर भगाना है
योग स्वास्थ्य की संजीवनी है
अपने तन मन को जगाना है..
योग करे प्राणतत्व का संचार
भविष्य होगा गुलजार
नित्य जो करे योग का पालन
देश में करें योग का प्रचार
ध्यान में हो एकाकार
ज्ञान का होता संचार
इन्द्रियों को रखे केन्द्रित
होता ईश्वर से साक्षात्कार .
डॉ.भावना शुक्ल
प्रकृति की गोद में, करें ध्यान और योग.
प्राणायाम से नष्ट हों जीवन के सब रोग.
जीवन के सब रोग मिटें, आनंद मिलेगा,
सकारात्मक उर्जा होगी तो हृदय खिलेगा.
कवि हो जाता धन्य देख यह दृष्य सुहाना,
ऐसे सुख से बढ़ कर सुख न हमने जाना
‘योग-विभूति-सिद्धि’, अति दुर्लभ, सहज नहीं हो सकतीं प्राप्त।
पर इनसे न ‘मुक्ति’ मिल सकती, कहते सिद्ध अनुभवी आप्त॥
है अवश्य ही बड़ा विलक्षण यह मुनियोंका योग-महत्व।
जान सके वे इसके द्वारा ईश-सृष्टि का सारा तत्व॥
इसे छोड़, फिर हुए अग्रसर चिन्मय ‘परम-धाम’ की ओर।
मिले परम प्रभुमें वे जाकर, हुए ‘नित्य आनन्द-विभोर’॥
यही चरम फल श्रेष्ठ योग का, यही योगियों का नित साध्य।
इसीलिये करते साधन वे, मान एक प्रभु को आराध्य॥
वही ‘युक्ततम’ जो भजते हैं अन्तरात्मासे भगवान।
नित्य-निरन्तर हो अनन्य जो, रह प्रभुके प्रति श्रद्धावान॥
-हनुमानप्रसाद पोद्दार
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योग कविता हिंदी में (Yoga Poem In Hindi)
अरूप का नायब तोहफा है योग,
तरो-ताजा हवा का, झोंका है योग।
साँसों में बसी हैं, कायनात जिसकी,
उसी के नूर का, सरोपा है योग।
सन्नाटे का साज, बजता यह अहर्निश,
साँसों के सुरों का, सफहा है योग।
किस कदर गूँजती है, रूह की सदाकत,
वेदों के माधुर्य का झरोखा है योग।
उमगती अलमस्ती कोई अन्तर्तम से,
मन से चेतना तक इजाफा है योग।
स्व का स्पंदन है, अगाध पारावार,
तन-मन का नियति से नाता है योग।
त्याग नहीं बोध है, अशुभ का निवारण,
रूपान्तरण का सहज सलीका है योग।
अतीन्द्रिय बोध से संवरते हैं हम,
श्वास-दर-श्वास का सरोधा है योग।
कोलाहल डूब गया, शान्ति के स्वरों में,
बूँद का सागर से सौदा है योग।
प्राणों में बजती है, चेतना की वंशी,
अगम्य से मिलन का मौका है योग।
ज्योतिमेय ऊर्जा से चलता जीवन,
अमृत-सा-मीठा शरीफा है योग।
~ गिरिराज सुधा
योगक साधक बनल सदा सँ, विश्व गुरु अछि देश हमर:
भौतिक आत्मिक आ आध्यात्मिक ज्ञान विवेकक केंद्र प्रवर।
पतंजलिक अष्टांग योग जीवन जीबाक कला सिखबैछ:
चित्त वृत्ति कें कय निरोध सब आधि व्याधि कें दूर करैछ।
कपाल भाति, भ्रामरी, भस्त्रिका केओ करय अनुलोम विलोम
बाहर काया सौष्ठव होअए, विहुँसय अंतर हृदयक व्योम।
भाँति-भाँति के योगासन थिक, यथायोग्य अभ्यास करी
श्वांस-श्वांस में परमात्मा संग मिलनक सुखद प्रयास करी।
-आभा झा
भारतीय योग संस्थान का अनुपम योगदान।
नित करें योगासन प्राणायाम ध्यान।
बनी रहे सदा चेहरे पर मुस्कान।।
बढाइए योग से जागरूकता, ज्ञान।
मत भूलिए करना अपना सम्मान।।
हे माटी के पुतले क्यों करते हो अभिमान।
एकाग्रता आन्तरिक चेतना को बढ़ाती।
योग की शक्ति हमें जीना सिखाती।।
जब जीवन में समर्पण, श्रद्धा है आती।
जीवन की धारा सार्थक बन जाती।।
ध्यान की अतल गहराई करती है उत्थान।
छोड़ दो पीछे जीवन की सकल बुराई।
निःस्वार्थ सेवा की खिलाओ अमराई।।
जिसने भी जीवन में प्रेम नदी बहाई।
खुशियां ही खुशियां आंगन में लहराईं।।
योग ही है जीवन-समस्या का समाधान।
भारतीय योग संस्थान का अनुपम योगदान।।
~ रेखा सिंघल
Conclusion:-
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